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स प॑वस्व॒ सह॑मानः पृत॒न्यून्त्सेध॒न्रक्षां॒स्यप॑ दु॒र्गहा॑णि । स्वा॒यु॒धः सा॑स॒ह्वान्त्सो॑म॒ शत्रू॑न् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa pavasva sahamānaḥ pṛtanyūn sedhan rakṣāṁsy apa durgahāṇi | svāyudhaḥ sāsahvān soma śatrūn ||

पद पाठ

सः । प॒व॒स्व॒ । सह॑मानः । पृ॒त॒न्यून् । सेध॑न् । रक्षां॑सि । अप॑ । दुः॒ऽगहा॑णि । सु॒ऽआ॒यु॒धः । स॒स॒ह्वान् । सो॒म॒ । शत्रू॑न् ॥ ९.११०.१२

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:110» मन्त्र:12 | अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:23» मन्त्र:6 | मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:12


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! आप (पृतन्यून्, रक्षांसि) संग्राम की कामना करनेवाले राक्षसों को (दुर्गहानि) जो दुर्गम हैं (अप, सेधन्, पवस्व) दूर करते हुए हमारी रक्षा करें (सहमानः) सहनशील (स्वायुधः) स्वयम्भू (शत्रुन्) शत्रुओं का (ससह्वान्) तिरस्कार करते हुए (सः) आप हमें अभय प्रदान करें ॥१२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में परमात्मा से यह प्रार्थना की गई है कि हे भगवन् ! आप कुमार्ग में प्रवृत्त दुष्ट पुरुषों से हमारी रक्षा करें। जिनसे रक्षा की जाती है, उनका नाम “राक्षस” है, सो हे पिता ! आप सम्पूर्ण विघ्नकारी पुरुषों से हमारी रक्षा करते हुए हमें अभय प्रदान करें ॥१२॥ यह ११० वाँ सूक्त और तेईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) स परमात्मा  (दुर्गहानि)  दुर्दमानि  (पृतन्यून्,  रक्षांसि) संग्रामाभिलाषि राक्षसान् (अप, सेधन्) अपनयन् (पवस्व) मां रक्षतु (सहमानः)  सहनशीलः  (स्वायुधः)  स्वयम्भूः  (शत्रून्, ससह्वान्) शत्रून् तिरस्कुर्वन् मा संरक्षतु ॥१२॥ इति दशोत्तरशततमं सूक्तं त्रयोविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥